रोगों के प्रकारः प्रकृति, गुण और प्रसार के कारणों के आधार पर रोग दो प्रकार के होते हैं–

1. जन्मजात रोग वैसे रोगों को कहा जाता है जो नवजात शिशु में जन्म के समय से ही विद्यमान होते हैं। ये रोग आनुवांशिक अनियमितताओं या उपापचयी विकारों या किसी अंग के सही तरीके से काम नहीं करने की वजह से होते हैं। ये मूल रूप से स्थायी रोग हैं जिन्हें   आमतौर पर आसानी से दूर नहीं किया जा सकता है, जैसे – आनुवंशिकता के कारण बच्चों में कटे हुए होंठ (हर्लिप), कटे हुए तालु, हाथीपाँव जैसी बीमारियां, गुणसूत्रों में असंतुलन की वजह से मंगोलिज्म जैसी बीमारी, हृदय संबंधी रोग की वजह से बच्चा नीले रंग का पैदा होना आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।
2. अर्जित रोग, वैसे रोगों या विकारों को कहते हैं जो जन्मजात नहीं होते लेकिन विभिन्न कारणों और कारकों की वजह से हो जाते हैं। इन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जा सकता है:
(i) संचायी या संक्रामक रोगः ये रोग कई प्रकार के रोगजनक वायरस, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, कवक और कीड़ों की वजह से होते हैं। ये रोगजनक आमतौर पर रोगवाहकों की मदद से एक जगह से दूसरे जगह फैलते हैं।




(ii) गैर–संचारी या गैर–संक्रामक रोग या अपक्षयी रोगः ये रोग मनुष्य के शरीर में कुछ अंगों या अंग प्रणाली के सही तरीके से काम नहीं करने की वजह से होते हैं। इनमे से कई रोग पोषक तत्वों, खनिजों या विटामिनों की कमी से भी होते हैं, जैसे – कैंसर, एलर्जी इत्यादि|

रक्ताधान की वजह से फैलने वाले रोग

एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसिएंसी सिंड्रोम): इस रोग में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाती है और यह इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस (एचआईवी) की वजह से होता है। एचआईवी दो प्रकार के होते हैं– HIV-1 और HIV-2. एड्स से संबंधित फिलहाल सबसे आम वायरस HIV-1 है| अफ्रीका के जंगली हरे बंदरों के खून में पाया जाने वाला सिमीयन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस (एसआईवी) HIV-2 के जैसा ही है। एचआईवी एक रेट्रोवायरस है यह आरएनए से डीएनए बना सकता है। एचआईवी से प्रभावित होने वाली प्रमुख कोशिका सहायक टी– लिम्फोसाइट है| यह कोशिका सीडी–4 रेसेप्टर के रूप में होती हैं। एचआईवी धीरे– धीरे टी– लिम्फोसाइट्स को नष्ट कर देता है। जिसके कारण मरीज में कभी– कभी लिम्फ नोड्स में हल्का सूजन, लंबे समय तक चलने वाला बुखार, डायरिया या अन्य गैर– विशिष्ट लक्षण दिखाई देते हैं|




एड्स के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यः भारत में सबसे पहली बार एड्स का मामला 1986 में पता चला था और उस समय रोग अपने अंतिम चरण में था। एचआईवी एंटीबॉडीज का पता एलिजा(ALISA) टेस्ट (एंजाइम– लिक्ड इम्यूनो सॉर्बेंट ऐसे) से लगाया जा सकता है। दुनिया भर में विश्व एड्स दिवस 1 दिसंबर को मनाया जाता है।




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  बैक्टीरिया से होने वाले रोग

रोग का नाम

रोगाणु का नाम

प्रभावित अंग

लक्षण

हैजाबिबियो कोलेरीपाचन तंत्रउल्टी व दस्त, शरीर में ऐंठन एवं डिहाइड्रेशन
टी. बी.माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिसफेफड़ेखांसी, बुखार, छाती में दर्द, मुँह से रक्त आना
कुकुरखांसीवैसिलम परटूसिसफेफड़ाबार-बार खांसी का आना
न्यूमोनियाडिप्लोकोकस न्यूमोनियाईफेफड़ेछाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी
ब्रोंकाइटिसजीवाणुश्वसन तंत्रछाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी
प्लूरिसीजीवाणुफेफड़ेछाती में दर्द, बुखार, सांस लेने में परेशानी
प्लेगपास्चुरेला पेस्टिसलिम्फ गंथियांशरीर में दर्द एवं तेज बुखार, आँखों का लाल होना तथा गिल्टी का निकलना
डिप्थीरियाकोर्नी वैक्ट्रियमगलागलशोथ, श्वांस लेने में दिक्कत
कोढ़माइक्रोबैक्टीरियम लेप्रतंत्रिका तंत्रअंगुलियों का कट-कट कर गिरना, शरीर पर दाग
टाइफायडटाइफी सालमोनेलआंतबुखार का तीव्र गति से चढऩा, पेट में दिक्कत और बदहजमी
टिटेनसक्लोस्टेडियम टिटोनाईमेरुरज्जुमांसपेशियों में संकुचन एवं शरीर का बेडौल होना
सुजाकनाइजेरिया गोनोरीप्रजनन अंगजेनिटल ट्रैक्ट में शोथ एवं घाव, मूत्र त्याग में परेशानी
सिफलिसट्रिपोनेमा पैडेडमप्रजनन अंगजेनिटल ट्रैक्ट में शोथ एवं घाव, मूत्र त्याग में परेशानी
मेनिनजाइटिसट्रिपोनेमा पैडेडममस्तिष्कसरदर्द, बुखार, उल्टी एवं बेहोशी
इंफ्लूएंजाफिफर्स वैसिलसश्वसन तंत्रनाक से पानी आना, सिरदर्द, आँखों में दर्द
ट्रैकोमाबैक्टीरियाआँखसरदर्द, आँख दर्द
राइनाटिसएलजेनटसनाकनाक का बंद होना, सरदर्द
स्कारलेट ज्वरबैक्टीरियाश्वसन तंत्रबुखार




वायरस से होने वाले रोग

रोग का नाम

प्रभावित अंग

लक्षण

गलसुआपेरोटिड लार ग्रन्थियांलार ग्रन्थियों में सूजन, अग्न्याशय, अण्डाशय और वृषण में सूजन, बुखार, सिरदर्द। इस रोग से बांझपन होने का खतरा रहता है।
फ्लू या एंफ्लूएंजाश्वसन तंत्रबुखार, शरीर में पीड़ा, सिरदर्द, जुकाम, खांसी
रेबीज या हाइड्रोफोबियातंत्रिका तंत्रबुखार, शरीर में पीड़ा, पानी से भय, मांसपेशियों तथा श्वसन तंत्र में लकवा, बेहोशी, बेचैनी। यह एक घातक रोग है।
खसरापूरा शरीरबुखार, पीड़ा, पूरे शरीर में खुजली, आँखों में जलन, आँख और नाक से द्रव का बहना
चेचकपूरा शरीर विशेष रूप से चेहरा व हाथ-पैरबुखार, पीड़ा, जलन व बेचैनी, पूरे शरीर में फफोले
पोलियोतंत्रिका तंत्रमांसपेशियों के संकुचन में अवरोध तथा हाथ-पैर में लकवा
हार्पीजत्वचा, श्लष्मकलात्वचा में जलन, बेचैनी, शरीर पर फोड़े
इन्सेफलाइटिसतंत्रिका तंत्रबुखार, बेचैनी, दृष्टि दोष, अनिद्रा, बेहोशी। यह एक घातक रोग है




प्रमुख अंत: स्रावी ग्रंथियां एवं उनके कार्ये

ग्रन्थि का नाम

हार्मोन्स का नाम

कार्य

पिट्यूटरी ग्लैंड या पियूष ग्रन्थिसोमैटोट्रॉपिक हार्मोन
थाइरोट्रॉपिक हार्मोन
एडिनोकार्टिको ट्रॉपिक हार्मोन
फॉलिकल उत्तेजक हार्मोन
ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन
एण्डीड्यूरेटिक हार्मोन
कोशिकाओं की वृद्धि का नियंत्रण करता है।
थायराइड ग्रन्थि के स्राव का नियंत्रण करता है।
एड्रीनल ग्रन्थि के प्रान्तस्थ भाग के स्राव का नियंत्रण करता है।
नर के वृषण में शुक्राणु जनन एवं मादा के अण्डाशय में फॉलिकल की वृद्धि का नियंत्रण करता है।
कॉर्पस ल्यूटियम का निर्माण, वृषण से एस्ट्रोजेन एवं अण्डाशय से प्रोस्टेजन के स्राव हेतु अंतराल कोशिकाओं का उद्दीपन
शरीर में जल संतुलन अर्थात वृक्क द्वारा मूत्र की मात्रा का नियंत्रण करता है।
थायराइड ग्रन्थिथाइरॉक्सिन हार्मोनवृद्धि तथा उपापचय की गति को नियंत्रित करता है।
पैराथायरायड ग्रन्थिपैराथायरड हार्मोन
कैल्शिटोनिन हार्मोन
रक्त में कैल्शियम की कमी होने से यह स्रावित होता है। यह शरीर में कैल्शियम फास्फोरस की आपूर्ति को नियंत्रित करता है।
रक्त में कैल्शियम अधिक होने से यह मुक्त होता है।
एड्रिनल ग्रन्थि
  • कॉर्टेक्स ग्रन्थि
  • मेडुला ग्रन्थि
ग्लूकोर्टिक्वायड हार्मोन
मिनरलोकोर्टिक्वायड्स हार्मोन
एपीनेफ्रीन हार्मोन
नोरएपीनेफ्रीन हार्मोन
कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा उपापचय का नियंत्रण करता है।
वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण का पुन: अवशोषण एवं शरीर में जल संतुलन करता है।
ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है।
ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है।
अग्नाशय की लैगरहेंस कीइंसुलिन हार्मोनरक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है।
द्विपिका ग्रन्थिग्लूकागॉन हार्मोनरक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है।
अण्डाशय ग्रन्थिएस्ट्रोजेन हार्मोन
प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन
रिलैक्सिन हार्मोन
मादा अंग में परिवद्र्धन को नियंत्रित करता है।
स्तन वृद्धि, गर्भाशय एवं प्रसव में होने वाले परिवर्तनों को नियंत्रित करता है।
प्रसव के समय होने वाले परिवर्तनों को नियंत्रित करता है।
वृषण ग्रन्थिटेस्टेरॉन हार्मोननर अंग में परिवद्र्धन एवं यौन आचरण को नियंत्रित करता है।




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विटामिन की कमी से होने वाले रोग

विटामिन

रोग

स्रोत

विटामिन एरतौंधी, सांस की नली में परत पडऩामक्खन, घी, अण्डा एवं गाजर
विटामिन बी1बेरी-बेरीदाल खाद्यान्न, अण्डा व खमीर
विटामिन बी2डर्मेटाइटिस, आँत का अल्सर,जीभ में छाले पडऩापत्तीदार सब्जियाँ, माँस, दूध, अण्डा
विटामिन बी3चर्म रोग व मुँह में छाले पड़ जानाखमीर, अण्डा, मांस, बीजवाली सब्जियाँ, हरी सब्जियाँ आदि
विटामिन बी6चर्म रेगदूध, अंडे की जर्दी, मटन आदि




अन्य बीमारियां

कैंसरः यह रोग कोशिकाओँ के अनियंत्रित विकास और विभाजन के कारण होता है जिसमें कोशिकाओं का गांठ बन जाता है, जिसे नियोप्लाज्म कहते हैं। शरीर के किसी खास हिस्से में असामान्य और लगातार कोशिका विभाजन को ट्यूमर कहा जाता है।
गाउट:  पाँव के जोड़ों में यूरिक अम्ल के कणों के जमा होने से यह रोग होता है| यह यूरिक अम्ल के जन्मजात उपापचय से जुड़ी बीमारी है जो यूरिक अम्ल के उत्सर्जन के साथ बढ़ जाता है।
हीमोफीलिया को ब्लीडर्स रोग कहते हैं। यह लिंग से संबंधित रोग है| हीमोफीलिया के मरीज में, खून का थक्का बनने की क्षमता बहुत कम होती है।
हीमोफीलिया ए, यह एंटी– हीमोफीलिया ग्लोब्युलिन फैक्टर– VIII की कमी की वजह से होता है। हीमोफीलिया के पांच में से करीब चार मामले इसी प्रकार के होते हैं।
हीमोफीलिया बी या क्रिस्मस डिजीज प्लाज्मा थ्रम्बोप्लास्टिक घटक में दोष के कारण होता है।
हेपेटाइटिसः यह एक विषाणुजनित रोग है जो यकृत को प्रभावित करता है, जिसके कारण  लीवर कैंसर या पीलिया नाम की बीमारी हो जाती है। यह रोग मल द्वारा या मुंह द्वारा फैलता है। बच्चे और युवा व्यस्कों में यह रोग होने की संभावना अधिक होती है और अभी तक इसका कोई टीका नहीं बन पाया है।

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