पोंगल पर निबंध

Pongal Essay In Hindi - पोंगल पर निबंध
पोंगल पर निबंध

भूमिका : पोंगल का अर्थ होता है परिपूर्ण। इसी दिन लोगों के घर खुशियों और धन से भरे होते हैं। पोंगल किसानों का त्यौहार होता है। पोंगल त्यौहार को मुख्य रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है। ये त्यौहार चार दिनों तक मनाया जाता है। यह चार दिन का त्यौहार उन देवताओं को समर्पित होता है जो कृषि से संबंधित होते हैं।

पोंगल त्यौहार के दिन जो प्रसाद भगवान सूर्य देव को भोग लगाने के लिए बनाया जाता है उसे पोंगल कहते हैं इसी वजह से इसका नाम पोंगल पड़ा। पोंगल के त्यौहार को तमिलनाडू में फसल काटने की खुशी में मनाया जाता है। विशेष रूप से यह किसानी त्यौहार होता है। इसे जनवरी महीने के बीच में मनाया जाता है। इस त्यौहार को लोग अपनी अच्छी फसल होने की वजह से मनाते हैं। इसमें चारों दिनों का अपना अलग महत्व होता है।

पोंगल का इतिहास : पोंगल तमिलनाडू का एक प्राचीन त्यौहार है। हरियाली और संपन्नता को समर्पित पोंगल त्यौहार के दिन भगवान सूर्य देव जी की पूजा अर्चना की जाती है और भोग लगाया जाता है। जो प्रसाद भगवान को भोग लगाया जाता है उसे ही पोंगल कहते हैं। इसी वजह से इस त्यौहार का नाम पोंगल पड़ा था।

पोंगल का इतिहास 200 से 300 ईस्वी पूर्व का हो सकता है। हालाँकि पोंगल को एक द्रविड़ फसल के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार का संस्कृत के पुराणों में भी उल्लेख मिल जाता है। कुछ पौराणिक कहानियां पोंगल त्यौहार के साथ जुडी हुई है। पोंगल से जुडी दो कहानियां हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपने बैल को स्वर्ग से पृथ्वी पर जाकर मनुष्यों को एक एक संदेश देने के लिए कहा। भगवान शिव ने कहा की उन्हें हर रोज तेल से स्नान करना चाहिए और महीने में एक बार खाना खाना चाहिए। लेकिन बसवा ने भगवान शिव की आज्ञा के विपरीत संदेश लोगों को दिया।

बसवा ने लोगों से कहा कि उन्हें एक दिन तेल से स्नान करना चाहिए और रोज खाना खाना चाहिए। बसवा की इस गलती से भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए थे और उन्होंने बसवा को श्राप दिया था। बसवा को स्थायी रूप से धरती पर रहने के लिए कैलाश से निकाल दिया गया था।

उन्हें किसानों की अधिक अन्न उत्पन्न करने के लिए मदद करनी होगी। इस तरह से यह दिन मवेशियों से संबंधित है। इसी तरह से इस दिन की एक और पौराणिक कथा भी है जो भगवान कृष्ण और भगवान इंद्र से जुडी हुई है। जब भगवान कृष्ण छोटे थे तो उन्होंने भगवान इंद्र को सबक सिखाने का फैसला लिया था क्योंकि वे देवताओं के राजा बन गये थे इसलिए उनमे अभिमान आ गया था।

भगवान श्री कृष्ण ने अपने गाँव के लोगों को भगवान इंद्र की पूजा न करने के लिए कहा। इस बात से भगवान इंद्र बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने बादलों को तूफान लेने और तीन दिन तक लगातार बारिश करने ले लिए बादलों को भेजा। इस तूफान से पूरा द्वारका तहस-नहस हो गया था।

उस समय सभी लोगों की रक्षा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी से ऊँगली पर उठा लिया था। उस समय इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ था तब उन्होंने भगवान कृष्ण की शक्ति को समझा था। भगवन श्री कृष्ण ने विश्वकर्मा से द्वारका को दुबारा से बसने के लिए कहा और ग्वालों ने अपनी गायों के साथ फिर से खेती की थी।

हार्वेस्ट महोत्सव : पोंगल एक फसल का उत्सव होता है जो जनवरी महीने के बीच में आता है। यह तमिलनाडू के लोगों का प्रमुख त्यौहार होता है। सीजन में लोगों को ग्रामीण तमिलनाडू में व्यस्त कर दिया जाता है। स्त्री , पुरुष और बच्चे सभी खेतों में फसल लगाने के लिए खेतों में आयंगे।

क्योंकि चावल को भगवान को पेश किया जाता है तो इसे रसोई में पका सकते हैं अंगन में या किसी खुले स्थान पर भी पकाया जा सकता है भगवान को यह देखने के लिए कि लोगों ने उन्हें कितना उत्साह दिलाया है। जिस क्षेत्र में धान होते हैं वह क्षेत्र ऐसे लगता है जैसे हरे समुद्र की लहरें दिखाई देती हैं। ये देखकर किसान का मन ख़ुशी से भर जाता है। ऐसा दृश्य तमिलनाडू के लोगों के दिमागदार दिल को कमजोर कर देता है।

पोंगल कैसे मनाते हैं : पोंगल के त्यौहार को एक दिन नहीं बल्कि चार दिन तक मनाया जाता है। इस त्यौहार को हिन्दू धर्म के साल भर में आने वाले त्यौहारों में से एक माना जाता है। इसके महत्व के तथ्य से यह निहित है की इस दिन भगवान को फसल के लिए उत्कर्ष मौसम के लिए धन्यवाद किया जाता है।

पोंगल को तमिल शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता है उबलना। इस त्यौहार को जनवरी से फरवरी के बीच आयोजित किया जाता है। इस मौसम में विभिन्न प्रकार के अनाजों को पैदा किया जाता है जैसे – चावल , गन्ना , हल्दी आदि लेकिन इसके अलावा तमिलनाडू में खाना पकाने में अनिवार्य होने वाली फसल काटी जाती हैं।

तमिल कैलेंडर के हिसाब से पोंगल के लिए जनवरी के महीने के बीच का समय साल का सबसे महत्वपूर्ण होता है। तमिलनाडू के इस त्यौहार को 14-15 जनवरी को मनाया जाता है। यह त्यौहार मौसमी चक्र के साथ मानव जाति को ठीक से संतुष्ट करने की पेशकश करने का त्यौहार होता है। परम्परागत रूप से देखा जाये तो इस महीने में शादियाँ बहुत होती हैं। यह परम्परा उन लोगों के लिए कृषि के आयोजन के लिए होती है जो कृषि से संबंध रखते हैं।

पोंगल के चार दिन : पोंगल चार दिवसीय त्यौहार होता हैं। पोंगल त्यौहार के ये चार दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। पहला दिन भोंगी पोंगल होता है, दूसरा दिन सूर्य पोंगल होता है, तीसरा दिन मुत्तु पोंगल होता है और चौथा दिन कानुम पोंगल होता है।

पोंगल का पहला दिन : पोंगल का पहला दिन भोगी पोंगल होता है। इस दिन लोग अपने घरों में मिट्टी के बर्तनों पर कुमकुम और स्वस्तिक लगाते हैं। इस दिन घर के कोने-कोने में साफ-सफाई की जाती है। पोंगल त्यौहार के पहले दिन भगवान इंद्र की पूजा की जाती है क्योंकि भगवान इंद्र को बादलों का शासक कहते हैं और वो ही वर्षा करते हैं।

अगर अच्छी फसल चाहिए तो बारिस का होना बहुत ही जरूरी है। फसल की प्रचुरता के लिए भगवान इंद्र को श्रद्धांजलि दी जाती है। इस दिन एक अनुष्ठान और मनाया जाता है जिसे भोगी मंतालू भी कहते हैं। अच्छी फसल होने की वजह से किसान खुशी के साथ भगवान इंद्र जी की आराधना करते हैं और उनका शुक्रिया करते हैं।

भगवान से अपने ऊपर आशीर्वाद को बनाए रखने के लिए कहते हैं जिससे उनके घर और देश में धन और सुख की समृद्धि बनी रहे। इस दिन घर के बेकार सामान को गाय के उपलों और लकड़ी से जला दिया जाता है। इस आग के चारों ओर लड़कियां नाचती हैं और भगवान के लिए गीत गाती हैं।

पोंगल का दूसरा दिन : पोंगल का दूसरा दिन सूर्य पोंगल होता है। सूर्य पोंगल वाले दिन घर का जो सबसे बड़ा सदस्य होता है वो सूर्य देव के भोग के लिए पोंगल बनाता है। इस दिन पूजा या कृत्रिम पूजा का काम तब किया जाता है जब पोंगल को अन्य दैवीय वस्तुओं के साथ सूर्य देव को अर्पण किया जाता है।

पोंगल को मिट्टी से बने बर्तन में चावल और पानी डालकर बनाया जाता है। इस तरीके से जो चावल पकाए जाते हैं उन्हें ही पोंगल कहते हैं। सूर्य पोंगल के दिन लोग पारंपरिक पोषक और चिन्हों को पहनते हैं। सूर्य पोंगल के दिन लोगों द्वारा कोलाम बनाया जाता है यह एक शुभ चिन्ह होता है।

कोलाम को सुबह-सुबह नहा धोकर घर में सफेद चूने के पाउडर से बनाया जाता है।इस तरह से जो चावल पकते हैं उनसे भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। सूर्य भगवान से हमेशा अपने ऊपर कृपा बनाए रखने के लिए प्रार्थना की जाती है।

इस दिन एक रोचक अनुष्ठान भी किया जाता है जहाँ पर पति और पत्नी पूजा के बर्तनों को आपस में बाँट लेते हैं। गाँवों में पोंगल त्यौहार उसी भक्ति के साथ मनाया जाता है। अनुष्ठान के अनुसार हल्दी के पौधे को उस बर्तन के चारों ओर बांधा जाता है जिसमें चावलों को उबाला जाता है।

पोंगल का तीसरा दिन : पोंगल का तीसरा दिन मट्टू पोंगल होता है। मट्टू पोंगल वाले दिन गाय की विशेष पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन गाय को सजाया जाता है गाय के गले में घंटियाँ बांधी जाती है और फूलों की माला बांधी जाती है उसके बाद गाय की पूजा की जाती है।

मवेशियों की घंटियों की आवाज ग्रामीणों को आकर्षित करती हैं और लोग अपने मवेशियों को आपस में दौडाते हैं। किसान के लिए गाय को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। गाय ही किसान को दूध और खाद देती है। इस दिन गाय को पोंगल खिलाया जाता है और गाय के अलावा और पशुओं का भी आदर सत्कार किया जाता है।

क्योंकि पशु किसान का हर पल साथ देते हैं। पशु किसान की फसल की सिंचाई से लेकर फसक की कटाई तक मदद करते हैं। पशु किसान के सुख-दुःख में उसका साथ देते हैं इसी वजह से हिन्दू धर्म में भी पशुओं को पूजा जाता है। मट्टू पोंगल के दिन गांवों में हर किसान अपने गाय बैलों को पूजता है।

मट्टू पोंगल के दिन का एक और महत्व होता है। इस दिन सभी औरतें अपने भाइयों के अच्छे जीवन की कामना करता है। इस दिन घरों में स्वादिष्ट मिठाईयां बनाई जाती हैं और भेट के रूप में दी जाती हैं।

पोंगल का चौथा दिन : पोंगल का चौथा दिन कानुम पोंगल होता है। इस दिन सभी लोग और सदस्य एक साथ रहते हैं और एक साथ खाना खाते हैं। इस दिन हल्दी के पत्ते को धोकर इसमें खाना परोसा जाता और इस पर खासकर मिठाई, चावल , गन्ना , सुपारी परोसे जाते हैं।

इस दिन लोग अपने से बड़े लोगों का आशीर्वाद लेते हैं और अपने से छोटों को प्यार और उपहार देते हैं । इस दिन को बहुत ही ख़ुशी के साथ मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने भाइयों की चूना पत्थर और तेल के साथ आरती करती हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं।

पोंगल के आकर्षण : पोंगल त्यौहार को दक्षिण भारत में बहुत जोर-शोर से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को सजाते हैं। इस दिन बैलों की लड़ाई का आयोजन किया जाता हौ जो काफी प्रसिद्ध होता है।

रात के समय लोग सामूहिक भोजन का आयोजन करते हैं और एक-दूसरे को मंगलमय वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं। इस दिन लोग फसल और जीवन में रोशनी के लिए भगवान सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमे फेसबुक(Facebook) पर ज्वाइन करे Click Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *